अमृत वेले का हुक्मनामा – 10 अगस्त 2025
अंग : 560 वडहंसु महला ३ ॥ रसना हरि सादि लगी सहजि सुभाइ ॥ मनु त्रिपतिआ हरि नामु धिआइ ॥१॥ सदा सुखु साचै सबदि वीचारी ॥ आपणे सतगुर विटहु सदा बलिहारी ॥१॥ रहाउ ॥ अखी संतोखीआ एक लिव लाइ ॥ मनु संतोखिआ दूजा भाउ गवाइ ॥२॥ देह सरीरि सुखु होवै सबदि हरि नाइ ॥ नामु […]
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अंग : 491 गूजरी महला ३ ॥ तिसु जन सांति सदा मति निहचल जिस का अभिमानु गवाए ॥ सो जनु निरमलु जि गुरमुखि बूझै हरि चरणी चितु लाए ॥१॥ हरि चेति अचेत मना जो इछहि सो फलु होई ॥ गुर परसादी हरि रसु पावहि पीवत रहहि सदा सुखु होई ॥१॥ रहाउ ॥ सतिगुरु भेटे ता […]
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अंग : 684 धनासरी महला ५ ॥ त्रिपति भई सचु भोजनु खाइआ ॥ मनि तनि रसना नामु धिआइआ ॥१॥ जीवना हरि जीवना ॥ जीवनु हरि जपि साधसंगि ॥१॥ रहाउ ॥ अनिक प्रकारी बसत्र ओढाए ॥ अनदिनु कीरतनु हरि गुन गाए ॥२॥ हसती रथ असु असवारी ॥ हरि का मारगु रिदै निहारी ॥३॥ मन तन अंतरि […]
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अंग : 686 धनासरी महला १ ॥ सहजि मिलै मिलिआ परवाणु ॥ ना तिसु मरणु न आवणु जाणु ॥ ठाकुर महि दासु दास महि सोइ ॥ जह देखा तह अवरु न कोइ ॥१॥ गुरमुखि भगति सहज घरु पाईऐ ॥ बिनु गुर भेटे मरि आईऐ जाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥ सो गुरु करउ जि साचु द्रिड़ावै ॥ […]
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अंग : 709 सलोक ॥ संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥ चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥ पउड़ी ॥ चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न […]
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अंग : 709 सलोक ॥ संत उधरण दइआलं आसरं गोपाल कीरतनह ॥ निरमलं संत संगेण ओट नानक परमेसुरह ॥१॥ चंदन चंदु न सरद रुति मूलि न मिटई घांम ॥ सीतलु थीवै नानका जपंदड़ो हरि नामु ॥२॥ पउड़ी ॥ चरन कमल की ओट उधरे सगल जन ॥ सुणि परतापु गोविंद निरभउ भए मन ॥ तोटि न […]
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अंग : 630 सोरठि महला ५ ॥ सरब सुखा का दाता सतिगुरु ता की सरनी पाईऐ ॥ दरसनु भेटत होत अनंदा दूखु गइआ हरि गाईऐ ॥१॥ हरि रसु पीवहु भाई ॥ नामु जपहु नामो आराधहु गुर पूरे की सरनाई ॥ रहाउ ॥ तिसहि परापति जिसु धुरि लिखिआ सोई पूरनु भाई ॥ नानक की बेनंती प्रभ […]
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अंग : 545 बिहागड़ा महला ५ ॥ खोजत संत फिरहि प्रभ प्राण अधारे राम ॥ ताणु तनु खीन भइआ बिनु मिलत पिआरे राम ॥ प्रभ मिलहु पिआरे मइआ धारे करि दइआ लड़ि लाइ लीजीऐ ॥ देहि नामु अपना जपउ सुआमी हरि दरस पेखे जीजीऐ ॥ समरथ पूरन सदा निहचल ऊच अगम अपारे ॥ बिनवंति नानक […]
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अंग : 623 सोरठि महला ५ ॥ विचि करता पुरखु खलोआ ॥ वालु न विंगा होआ ॥ मजनु गुर आंदा रासे ॥ जपि हरि हरि किलविख नासे ॥१॥ संतहु रामदास सरोवरु नीका ॥ जो नावै सो कुलु तरावै उधारु होआ है जी का ॥१॥ रहाउ ॥ जै जै कारु जगु गावै ॥ मन चिंदिअड़े फल […]
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अंग : 584 वडहंसु महला ३ ॥ इहु सरीरु जजरी है इस नो जरु पहुचै आए ॥ गुरि राखे से उबरे होरु मरि जमै आवै जाए ॥ होरि मरि जमहि आवहि जावहि अंति गए पछुतावहि बिनु नावै सुखु न होई ॥ ऐथै कमावै सो फलु पावै मनमुखि है पति खोई ॥ जम पुरि घोर अंधारु […]
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