अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 29 दिसंबर 2025

अंग : 547
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥ सुनहु बेनंतीआ सुआमी मेरे राम ॥ कोटि अप्राध भरे भी तेरे चेरे राम ॥ दुख हरन किरपा करन मोहन कलि कलेसह भंजना ॥ सरनि तेरी रखि लेहु मेरी सरब मै निरंजना ॥ सुनत पेखत संगि सभ कै प्रभ नेरहू ते नेरे ॥ अरदासि नानक सुनि सुआमी रखि लेहु घर के चेरे ॥१॥
अर्थ: हे मेरे मालिक! मेरी बेनती सुन। (हम जीव) करोड़ों पापों से लथ पथ हैं, पर फिर भी तेरे (दर के) दास हैं। हे दुखों के नास करने वाले! हे कृपा करने वाले! हे महान! हे हमारे दुःख क्लेश दूर करने वाले! हे सर्ब-व्यापक! हे निर्लेप प्रभु! मैं तेरी सरन आया हूँ, मेरी लाज रख ले हे। प्रभु! तू हमारे बहुत नजदीक बस्ता है, तूं सब जीवों के अंग-संग रहता है, तूं सब जीवों की अरदास सुनता हैं और सब के किये काम देखता है। हे मेरे स्वामी! नानक की बनती सुन! मैं तेरे घर का गुलाम हूँ, मेरी इज्जत रख ले॥१॥


Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Begin typing your search term above and press enter to search. Press ESC to cancel.

Back To Top