अमृत वेले का हुक्मनामा – 10 नवंबर 2025
अंग : 494
ੴ सतिगुर प्रसादि गूजरी महला ४ घरु ३ माई बाप पुत्र सभि हरि के कीए ॥ सभना कउ सनबंधु हरि करि दीए ॥१॥ हमरा जोरु सभु रहिओ मेरे बीर ॥ हरि का तनु मनु सभु हरि कै वसि है सरीर ॥१॥ रहाउ ॥ भगत जना कउ सरधा आपि हरि लाई ॥ विचे ग्रिसत उदास रहाई ॥२॥ जब अंतरि प्रीति हरि सिउ बनि आई ॥ तब जो किछु करे सु मेरे हरि प्रभ भाई ॥३॥ जितु कारै कंमि हम हरि लाए ॥ सो हम करह जु आपि कराए ॥४॥ जिन की भगति मेरे प्रभ भाई ॥ ते जन नानक राम नाम लिव लाई ॥५॥१॥७॥१६॥
अर्थ: हे भाई ! माँ, पिता, पुत्र-यह सारे परमात्मा के बनाए हुए हैं। इन सभी के लिए आपस का रिशता परमात्मा ने आप ही बनाया हुआ है (सो, यह सही जीवन-मार्ग में रूकावट नहीं हैं)।1। हे मेरे भाई! (परमात्मा के मुकाबले) हमारा कोई जोर चल नहीं सकता। हमारा यह शरीर हमारा यह मन सब कुछ परमात्मा का बनाया हुआ है, हमारा शरीर परमात्मा के वश में है।1।रहाउ। हे भाई ! परमात्मा आप ही अपने भक्तों को अपने चरणों की प्रीति बख्शता है, उन भक्त जनो को ग्रिहसत में ही (माँ पिता पुत्र स्त्री आदि सबंधीआँ में रहते हुए ही) माया से निरलेप रखता है।2। हे भाई ! जब मनुख के हृदय में परमात्मा के साथ प्रेम बन जाता है, तब मनुख जो कुछ करता है (रजा में ही करता है, और) वह मेरे परमात्मा को अच्छा लगता है।3। हे भाई ! जिस कार में जिस काम में, परमात्मा हमे लगाता है, जो काम-कार परमात्मा साथ से करवाता है, हम वही काम-कार करते हैं।4। हे नानक ! (बोल-हे भाई !) जिन मनुष्यों की भक्ति परमात्मा को पसंद आती है, वह मनुख परमात्मा के नाम के साथ प्रेम पा लेते हैं।5।1।7।16।

