अमृत वेले का हुक्मनामा – 06 अक्तूबर 2025
अंग : 637
सोरठि महला ३ घरु १ तितुकी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ भगता दी सदा तू रखदा हरि जीउ धुरि तू रखदा आइआ ॥ प्रहिलाद जन तुधु राखि लए हरि जीउ हरणाखसु मारि पचाइआ ॥ गुरमुखा नो परतीति है हरि जीउ मनमुख भरमि भुलाइआ ॥१॥ हरि जी एह तेरी वडिआई ॥ भगता की पैज रखु तू सुआमी भगत तेरी सरणाई ॥ रहाउ ॥ भगता नो जमु जोहि न साकै कालु न नेड़ै जाई ॥ केवल राम नामु मनि वसिआ नामे ही मुकति पाई ॥ रिधि सिधि सभ भगता चरणी लागी गुर कै सहजि सुभाई ॥२॥ मनमुखा नो परतीति न आवी अंतरि लोभ सुआउ ॥ गुरमुखि हिरदै सबदु न भेदिओ हरि नामि न लागा भाउ ॥ कूड़ कपट पाजु लहि जासी मनमुख फीका अलाउ ॥३॥ भगता विचि आपि वरतदा प्रभ जी भगती हू तू जाता ॥ माइआ मोह सभ लोक है तेरी तू एको पुरखु बिधाता ॥ हउमै मारि मनसा मनहि समाणी गुर कै सबदि पछाता ॥४॥ अचिंत कम करहि प्रभ तिन के जिन हरि का नामु पिआरा ॥ गुर परसादि सदा मनि वसिआ सभि काज सवारणहारा ॥ ओना की रीस करे सु विगुचै जिन हरि प्रभु है रखवारा ॥५॥ बिनु सतिगुर सेवे किनै न पाइआ मनमुखि भउकि मुए बिललाई ॥ आवहि जावहि ठउर न पावहि दुख महि दुखि समाई ॥ गुरमुखि होवै सु अम्रितु पीवै सहजे साचि समाई ॥६॥ बिनु सतिगुर सेवे जनमु न छोडै जे अनेक करम करै अधिकाई ॥ वेद पड़हि तै वाद वखाणहि बिनु हरि पति गवाई ॥ सचा सतिगुरु साची जिसु बाणी भजि छूटहि गुर सरणाई ॥७॥ जिन हरि मनि वसिआ से दरि साचे दरि साचै सचिआरा ॥ ओना दी सोभा जुगि जुगि होई कोइ न मेटणहारा ॥ नानक तिन कै सद बलिहारै जिन हरि राखिआ उरि धारा ॥८॥१॥
अर्थ: राग सोरठि, घर १ में गुरु अमरदास जी की तीन-तुकी बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे हरी! तूं अपने भगतों की इज्जत सदा रखता है, जब से जगत बना है तब से (भगतों की इज्जत) रखता आ रहा है। हे हरी! प्रहलाद भगत जैसे अनेकों सेवकों के तुने इज्जत राखी है, तुने हर्नाकश्यप को मार डाला। हे हरी! जो मनुख गुरु के सन्मुख रहते हैं उनको निश्चय होता है (की भगवान् भगतों की इज्जत बचाता है, परन्तु) अपने मन के पीछे चलने वाले मनुख भटक कर कुराह पड़े रहते हैं।१। हे हरी! हे स्वामी! भगत तेरी सरन पड़े रहते हैं, तूं भगतों की इज्जत रख। हे हरी! (भगतों की इज्जत) तेरी ही इज्जत है।रहाउ। हे भाई! भगतों को मौत डरा नहीं सकती, मौत का डर भगतों के नजदीक नहीं आ सकता (क्यों-की मौत के डर की जगह) परमात्मा का नाम हर समय मन में बस्ता है, नाम की बरकत से ही वह (मौत के डर से मुक्ति पा लेते हैं। भगत गुरु के द्वारा (गुरु की सरन आ कर) आत्मिक अदोलता में प्रभु-प्रेम में (टिके रहते है, इस लिए) सब करामाती शक्तियां भगतों के चरणों में लगी रहती हैं।२। हे भाई! अपने मन के पीछै चलने वाले मनुष्यों को (परमात्मा पर) यकीन नहीं रहता, उनके अंदर लोभ-भरी गर्ज टिकी रहती है। गुरु की शरण पड़ कर भी उन (मनमुखों) के हृदय में गुरु का शब्द नहीं बसता, परमात्मा के नाम से उनका प्यार नहीं बनता। मनमुखों के बोल भी रूखे-रूखे होते हैं। पर उनके झूठ और ठगी के पाज उघड़ ही जाते हैं।३। हे प्रभु! अपने भक्तों में तू स्वयं काम करता है, तेरे भक्तों ने ही तेरे साथ गहरी सांझ डाली हुई है। पर, हे प्रभु! माया का मोह भी तेरी ही रचना है, तू खुद ही सर्व-व्यापक है, और रचनहार है, जिस मनुष्यों ने गुरु के शब्द से (अपने अंदर से) अहंकार को दूर करके मन का फुरना मन में ही लीन कर दिया है, उन्होंने (हे प्रभु! तेरे साथ) सांझ डाल ली।४। हे प्रभु! जिन्हें तेरा हरि-नाम प्यारा लगता है तू उनके काम कर देता है, उन्हें कोई चिन्ता-फिक्र नहीं होता। हे भाई! गुरु की कृपा से जिनके मन में परमात्मा सदा बसता रहता है, परमात्मा उनके सारे काम सँवार देता है। जिस मनुष्यों का रखवाला परमात्मा खुद बनता है, उनकी बराबरी जो भी मनुष्य करता है वह ख्वार होता है।५। हे भाई! गुरु की शरण पड़े बगैर किसी भी मनुष्य ने (परमात्मा से मिलाप का सुख) हासिल नहीं किया। अपने मन के पीछे चलने वाले मनुष्य फालतू बोल-बोल के बिलक-बिलक के आत्मिक मौत गले डाल लेते हैं। वे सदा जनम-मरण के चक्कर में पड़े रहते हैं (इस चक्कर से बचने के लिए कोई) जगह वे पा नहीं सकते, (और) दुख में (जीवन व्यतीत करते हुए आखिर) दुख में ही ग़र्क हो जाते हैं। जो मनुष्य गुरु की शरण पड़ता है वह आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल पीता है, (और, इस तरह) आत्मिक अडोलता में सदा-स्थिर हरि-नाम में लीन रहता है।६। हे भाई! गुरु की शरण पड़े बिना (मनुष्य को) जन्मों का चक्कर नहीं छोड़ता, वह चाहे अनेक ही (बनाए हुए धार्मिक) कर्म करता रहे। (पंडित लोग) वेद (आदि धर्म पुस्तकें) पढ़ते हैं, और (उनके बाबत निरी) बहसें ही करते हैं। (यकीन जानिए कि) परमात्मा के नाम के बिना उन्होंने प्रभु दर पर अपना सम्मान गवा लिया है। हे भाई! गुरु सदा स्थिर प्रभु के नाम का उपदेश करने वाला है, उसकी वाणी भी परमात्मा की महिमा वाली है। जो मनुष्य दौड़ के गुरु की शरण जा पड़ते हैं, वे (आत्मिक मौत से) बच जाते हैं।७। हे भाई! जिस मनुष्यों के मन में परमात्मा आ बसता है, वे मनुष्य सदा-स्थिर प्रभु के दर पे सही स्वीकार हो जाते हैं। उन मनुष्यों की उपमा हरेक युग में ही होती है, कोई (निंदक आदि उनकी इस हो रही उपमा को) मिटा नहीं सकता। हे नानक! (कह:) मैं उन मनुष्यों से सदके जाता हूँ, जिन्होंने परमात्मा (के नाम) को अपने दिल में बसा के रखा है।८।१।