अमृत ​​वेले का हुक्मनामा – 27 सितंबर 2025

अंग : 730
सूही महला १ ॥ कउण तराजी कवणु तुला तेरा कवणु सराफु बुलावा ॥ कउणु गुरू कै पहि दीखिआ लेवा कै पहि मुलु करावा ॥१॥ मेरे लाल जीउ तेरा अंतु न जाणा ॥ तूं जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा तूं आपे सरब समाणा ॥१॥ रहाउ ॥ मनु ताराजी चितु तुला तेरी सेव सराफु कमावा ॥ घट ही भीतरि सो सहु तोली इन बिधि चितु रहावा ॥२॥ आपे कंडा तोलु तराजी आपे तोलणहारा ॥ आपे देखै आपे बूझै आपे है वणजारा ॥३॥ अंधुला नीच जाति परदेसी खिनु आवै तिलु जावै ॥ ता की संगति नानकु रहदा किउ करि मूड़ा पावै ॥४॥२॥९॥
अर्थ: हे भगवान ! कोई ऐसी तकड़ी नहीं कोई ऐसा बाट नहीं (जो तेरे गुणों का अंदाजा ला सके), कोई ऐसा सराफ नहीं जिस को मैं (तेरे गुणों का अंदाजा लगाने के लिए) बुला सकाँ । मुझे कोई ऐसा उसताद नहीं दिखता जिस पासों मैं तेरा मुल्य पवा सकाँ या मुल्य पाण की जाच सिक्ख सकाँ ।1। हे मेरे सुंदर भगवान जी ! मैं तेरे गुणों का अंत नहीं जान सकता (मुझे यह समझ नहीं आ सकती कि तेरे में कितनी कु सिफत हैं) । तूँ पानी में भरपूर हैं,तूँ धरती के अंदर व्यापक हैं, तूँ आकाश में हर जगह मौजूद हैं, तूँ आप ही सब जीवों में सब जगह में समाया हुआ हैं ।1 ।रहाउ । हे भगवान ! अगर मेरा मन तकड़ी बन जाए, अगर मेरा चित् तोलने वाला बाट बन जाए, अगर मैं तेरी सेवा कर सकूँ,तेरा सुमिरन कर सकूँ (अगर यह सेवा-सुमिरन मेरे लिए) सराफ बन जाए (तेरे गुणों का मैं अंत तो नहीं पा सकाँगा, पर) इन तरीको के साथ मैं आपने चित् को तेरे चरनों में टिका के रख सकाँगा । (हे भाई !) मैं अपने हृदय में ही उस खसम-भगवान को बैठा जाच सकूंगा ।2। (हे भाई ! भगवान हरेक जगह व्यापक है, अपनी प्रशंसा भी वह आप ही जानता है और जाच सकता है वह) आप ही तकड़ी है, तकड़ी का बाट है, तकड़ी की बोदी है, वह आप ही (आपने गुणों को) तोलने वाला है । वह आप ही सब जीवों की संभाल करता है, आप ही सब के दिलों की समझता है, आप ही जीव-रूप हो के जगत में (नाम) वणज कर रहा है ।3। अंजान नानक परमात्मा के गुणों की कदर नहीं पा सकता, क्योंकि इस की संगत सदा उस मन के साथ है जो (माया के मोह में) अंधा हुआ पड़ा है जो (जन्मों जन्मोंतरों के विकारों की मैल के साथ) नीची जाति का बना हुआ है, जो सदा भटकता रहता है, रता मात्र भी कहीं एक जगह टिक नहीं सकता ।4 ।2 ।9|


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