संधिआ ​​वेले का हुक्मनामा – 15 मई 2025

अंग : 615
सोरठि महला ५ ॥*
*गुण गावहु पूरन अबिनासी काम क्रोध बिखु जारे ॥ महा बिखमु अगनि को सागरु साधू संगि उधारे ॥१॥ पूरै गुरि मेटिओ भरमु अंधेरा ॥ भजु प्रेम भगति प्रभु नेरा ॥ रहाउ ॥ हरि हरि नामु निधान रसु पीआ मन तन रहे अघाई ॥ जत कत पूरि रहिओ परमेसरु कत आवै कत जाई ॥२॥ जप तप संजम गिआन तत बेता जिसु मनि वसै गोपाला ॥ नामु रतनु जिनि गुरमुखि पाइआ ता की पूरन घाला ॥३॥ कलि कलेस मिटे दुख सगले काटी जम की फासा ॥ कहु नानक प्रभि किरपा धारी मन तन भए बिगासा ॥४॥१२॥२३॥

अर्थ: (हे भाई! पूरे गुरू की श़रण पड़ कर) सर्व-व्यापक नाश-रहित प्रभू के गुण गाया कर। (जो मनुष्य यह उद्यम करता है गुरू उस के अंदर से आत्मिक मौत लाने वाले) काम क्रोध (आदि का) ज़हर जला देता है। (यह जगत विकारों की) आग का समुँद्र (है, इस में से पार निकलना) बहुत कठिन है (सिफ़त-सलाह के गीत गाने वाले मनुष्य को गुरू) साध संगत में (रख कर, इस समुँद्र से) पार निकाल देता है ॥१॥ (हे भाई! पूरे गुरू की श़रण पड़। जो मनुष्य पूरे गुरू की श़रण पड़ा) पूरे गुरू ने (उस का) भ्रम मिटा दिया, (उस का माया के मोह का) अंधकार दूर कर दिया। (हे भाई! तूँ भी गुरू की श़रण पड़ कर) प्रेम-भरी भक्ति से प्रभू का भजन किया कर, (तुझे) प्रभू अंग-संग (दिखाई पड़ेगा) ॥ रहाउ ॥ हे भाई! परमात्मा का नाम (सारे रसों का ख़ज़ाना है, जो मनुष्य गुरू की श़रण पड़ कर इस) ख़ज़ाने का रस पीता है, उस का मन उस का तन (माया के रसों से) भर जाता है। उस को हर जगह परमात्मा व्यापक दिख जाता है। वह मनुष्य फिर ना पैदा होता है ना ही मरता है ॥२॥ हे भाई! (गुरू के द्वारा) जिस मनुष्य के मन में सिृष्टी का पालन-हार आ वसता है, वह मनुष्य असली जप तप संजम का भेद समझने वाला हो जाता है वह मनुष्य आत्मिक जीवन की सूझ का ज्ञानवान हो जाता है। जिस मनुष्य ने गुरू की श़रण पड़ कर नाम रत्न ढूंढ लिया, उस की (आत्मिक जीवन वाली) मेहनत कामयाब हो गई ॥३॥ उस मनुष्य की यमों वाली फांसी कट गई (उस के गले से माया के मोह की फांसी कट गई जो आत्मिक मौत लिया कर यमों का वस पाती है), उस के सारे दुःख क्लेश कष्ट दूर हो गए, नानक जी कहते हैं – जिस मनुष्य ऊपर प्रभू ने मेहर की (उस को प्रभू ने गुरू मिला दिया, और) उस का मन उस का तन आत्मिक आनंद से प्रसन्न हो गया ॥४॥१२॥२३॥


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